नमस्ते विद्यार्थियों! आज हम SEO (सर्च इंजन ऑप्टिमाइज़ेशन) की दुनिया के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर चर्चा करेंगे—15 जून 2009 का वह दिन, जब गूगल ने नोफ़ोलोव एट्रिब्यूट के प्रबंधन में बड़े बदलावों की घोषणा की। यह बदलाव सीधे तौर पर पेजरैंक स्कल्प्टिंग को रोकने के लिए था। लेकिन ये शब्द क्या मतलब रखते हैं? चलिए, धीरे-धीरे समझते हैं।
1. लिंक और पेजरैंक (PageRank): ये क्या हैं और कैसे काम करते हैं?
कल्पना कीजिए, आप एक ब्लॉग लिखते हैं और उसमें किसी दूसरी वेबसाइट का लिंक डालते हैं। यह लिंक एक वोट (vote) की तरह काम करता है। गूगल के पेजरैंक एल्गोरिदम (algorithm) के अनुसार, जितने ज़्यादा लिंक्स (links) आपको मिलते हैं, उतना ही आपकी वेबसाइट का “महत्व” बढ़ता है। यही लिंक जूस (link juice) की अवधारणा है—एक लिंक के माध्यम से “शक्ति” का प्रवाह।
लेकिन समस्या यह थी: क्या हर लिंक समान होता है? जवाब है नहीं! यहीं से नोफ़ोलोव एट्रिब्यूट का जन्म हुआ। 2005 में गूगल ने इस एट्रिब्यूट को पेश किया, ताकि वेबमास्टर्स (webmasters) सर्च इंजन को बता सकें, “इस लिंक को फ़ॉलो मत करो।” उदाहरण के लिए, अगर आप किसी स्पॉन्सर्ड पोस्ट (sponsored post) या अविश्वसनीय वेबसाइट का लिंक डालते हैं, तो नोफ़ोलोव का इस्तेमाल करके आप गूगल को संकेत दे सकते हैं कि इस लिंक के पीछे न जाएँ।
2. पेजरैंक स्कल्प्टिंग (PageRank Sculpting) क्या थी और लोग इसे क्यों करते थे?
अब सोचिए: अगर आपकी वेबसाइट के होमपेज पर 10 लिंक्स हैं, और आप उनमें से 5 को नोफ़ोलोव कर देते हैं, तो क्या होगा? 2009 से पहले, गूगल का सिस्टम यह मानता था कि नोफ़ोलोव लिंक्स को “इग्नोर” कर दिया जाएगा, और बाकी 5 लिंक्स में पूरा लिंक जूस बँट जाएगा। मतलब, हर फ़ॉलो किए गए लिंक को 20% (1/5) पेजरैंक मिलता था, न कि 10% (1/10)।
यही थी पेजरैंक स्कल्प्टिंग की तरकीब—लिंक्स को चुनिंदा तरीके से नोफ़ोलोव करके, अपने महत्वपूर्ण पेजों (जैसे प्रोडक्ट पेज या लैंडिंग पेज) को ज़्यादा लिंक जूस देना। उदाहरण के लिए, एक भारतीय ई-कॉमर्स वेबसाइट अपने “कॉन्टैक्ट अस” या “टर्म्स एंड कंडीशन्स” पेज के लिंक्स को नोफ़ोलोव कर देती थी, ताकि उसका होमपेज और प्रोडक्ट पेज्स ज़्यादा रैंक करें।
3. 15 जून 2009 का बदलाव: गूगल ने पेजरैंक स्कल्प्टिंग को कैसे रोका?
अब सवाल यह है: गूगल ने इस प्रैक्टिस को क्यों रोकना चाहा? जवाब है—मैनिपुलेशन (manipulation)। गूगल चाहता था कि लिंक्स का इस्तेमाल ऑर्गेनिक (organic) तरीके से हो, न कि सिस्टम को गुमराह करने के लिए।
इसलिए, 2009 में गूगल ने घोषणा की: “अब नोफ़ोलोव लिंक्स को पेजरैंक के डिस्ट्रीब्यूशन (distribution) से पूरी तरह हटा दिया जाएगा।” मतलब, अगर आपके पेज पर 10 लिंक्स हैं और 5 नोफ़ोलोव हैं, तो पेजरैंक सभी 10 लिंक्स में बराबर बाँटा जाएगा, लेकिन नोफ़ोलोव लिंक्स को कोई “जूस” नहीं मिलेगा। इससे हर फ़ॉलो किया गया लिंक सिर्फ़ 10% (1/10) पेजरैंक ही पास कर पाता था, जबकि पहले यह 20% था।
उदाहरण:
मान लीजिए, आपकी वेबसाइट पर एक ब्लॉग है जिसमें आपने “सबसे अच्छी चाय की दुकानें” लिस्ट की हैं। पहले आप अपने प्रतियोगियों के लिंक्स को नोफ़ोलोव करके अपने पसंदीदा स्टोर्स को ज़्यादा रैंक दिलाते थे। लेकिन 2009 के बाद, ऐसा करने से कोई फ़ायदा नहीं हुआ—क्योंकि नोफ़ोलोव लिंक्स ने पेजरैंक को “रोकना” बंद कर दिया, बल्कि उसे “खोया” हुआ माना जाने लगा।
4. इस बदलाव का SEO पर क्या प्रभाव पड़ा?
यह बदलाव वेबमास्टर्स के लिए एक आघात था! अब पेजरैंक स्कल्प्टिंग बेअसर हो गई थी। इसके बाद, SEO एक्सपर्ट्स को क्वालिटी कंटेंट और नेचुरल लिंक बिल्डिंग पर ध्यान देना पड़ा।
तकनीकी पहलू:
नोफ़ोलोव अब केवल एक हिंट (hint) बन गया, न कि आदेश। गूगल ने स्पष्ट किया कि वह नोफ़ोलोव लिंक्स को क्रॉल (crawl) कर सकता है, लेकिन उन्हें रैंकिंग में शामिल नहीं करेगा।
संदर्भ:
जिन वेबसाइट्स ने अपने फ़ोरम (forum) या कमेंट सेक्शन में बड़े पैमाने पर नोफ़ोलोव का इस्तेमाल किया था, उन्हें अचानक ट्रैफ़िक (traffic) में गिरावट दिखी। उदाहरण के लिए, एक हिंदी न्यूज़ पोर्टल जो स्पैम कमेंट्स को नोफ़ोलोव करता था, उसका पेजरैंक अब उतना मज़बूत नहीं रहा।
5. आज के समय में नोफ़ोलोव का सही इस्तेमाल कैसे करें?
गूगल के दिशानिर्देश (guidelines) अब स्पष्ट हैं:
- स्पॉन्सर्ड लिंक्स (Sponsored Links): अगर आपको पैसे लेकर लिंक डालना है, तो नोफ़ोलोव ज़रूर लगाएँ।
- यूजर-जनरेटेड कंटेंट (User-Generated Content): ब्लॉग कमेंट्स या फ़ोरम पोस्ट्स में लिंक्स को नोफ़ोलोव करें, ताकि स्पैम न फैले।
- क्रॉल बजट (Crawl Budget): अगर आप चाहते हैं कि गूगल आपकी वेबसाइट के महत्वपूर्ण पेजों को प्राथमिकता दे, तो अनावश्यक लिंक्स (जैसे लॉगिन पेज) को नोफ़ोलोव करें।
याद रखिए: नोफ़ोलोव का मतलब “ब्लॉक” नहीं है—यह सिर्फ़ एक सुझाव है। गूगल अब भी नोफ़ोलोव लिंक्स को क्रॉल कर सकता है, खासकर अगर वे यूजर एक्सपीरियंस (user experience) के लिए ज़रूरी हैं।
6. निष्कर्ष: गूगल का संदेश स्पष्ट था!
2009 का यह बदलाव दिखाता है कि गूगल ऑर्गेनिक ग्रोथ को हमेशा प्राथमिकता देता है। पेजरैंक स्कल्प्टिंग जैसी तरकीबें अब काम नहीं करतीं। आज, सफल SEO के लिए आपको उपयोगकर्ता की मंशा (user intent) समझनी होगी, रिलेवंट कंटेंट (relevant content) बनाना होगा, और नेचुरल बैकलिंक्स (natural backlinks) प्राप्त करने होंगे।
कठिन शब्दावली:
शब्द | अर्थ |
---|---|
एल्गोरिदम (Algorithm) | निर्देशों का समूह जो किसी समस्या को हल करने के लिए बनाया जाता है। |
क्रॉल (Crawl) | सर्च इंजन द्वारा वेब पेजों को खोजना और उनका डेटा इकट्ठा करना। |
मैनिपुलेशन (Manipulation) | किसी सिस्टम को धोखे से अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना। |
ऑर्गेनिक (Organic) | प्राकृतिक तरीके से, बिना किसी धोखाधड़ी के। |
इस लेक्चर को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और कमेंट्स में बताएँ: क्या आपने कभी पेजरैंक स्कल्प्टिंग का इस्तेमाल किया था?
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1. नोफ़ोलोव एट्रिब्यूट क्या है और यह कैसे काम करता है?
नोफ़ोलोव एक HTML एट्रिब्यूट है जिसका उपयोग वेबमास्टर्स सर्च इंजनों को यह बताने के लिए करते हैं कि किसी विशेष लिंक को फॉलो न करें। यह 2005 में गूगल द्वारा पेश किया गया था ताकि स्पॉन्सर्ड लिंक्स या अविश्वसनीय स्रोतों के लिंक्स को सर्च इंजन द्वारा गिना न जाए।
2. पेजरैंक स्कल्प्टिंग क्यों अप्रभावी हो गई?
15 जून 2009 के बाद, गूगल ने अपने एल्गोरिदम को बदल दिया ताकि नोफ़ोलोव लिंक्स को पेजरैंक डिस्ट्रीब्यूशन से पूरी तरह हटा दिया जाए। इससे पहले, नोफ़ोलोव लिंक्स को छोड़कर बचे हुए लिंक्स में पेजरैंक बंटता था, लेकिन नए बदलाव के बाद सभी लिंक्स (नोफ़ोलोव सहित) पेजरैंक डिस्ट्रीब्यूशन में गिने जाने लगे, हालांकि नोफ़ोलोव लिंक्स को कोई लिंक जूस नहीं मिलता था।
3. क्या आज भी नोफ़ोलोव एट्रिब्यूट का उपयोग करना जरूरी है?
हाँ, विशेष स्थितियों में नोफ़ोलोव का उपयोग अभी भी महत्वपूर्ण है, जैसे स्पॉन्सर्ड लिंक्स, यूजर-जनरेटेड कंटेंट में लिंक्स, या जब आप गूगल को क्रॉल बजट प्राथमिकता देने के लिए मार्गदर्शन करना चाहते हैं। हालांकि, यह अब पेजरैंक डिस्ट्रीब्यूशन को प्रभावित नहीं करता है।
✅ Quick Summary
- 15 जून 2009 को गूगल ने नोफ़ोलोव एट्रिब्यूट के प्रबंधन में बड़ा बदलाव किया।
- पहले: नोफ़ोलोव लिंक्स को छोड़कर बचे लिंक्स में पेजरैंक बंटता था।
- बाद में: सभी लिंक्स (नोफ़ोलोव सहित) पेजरैंक डिस्ट्रीब्यूशन में गिने जाने लगे, लेकिन नोफ़ोलोव लिंक्स को जूस नहीं मिलता।
- परिणाम: पेजरैंक स्कल्प्टिंग (लिंक जूस को मैनिपुलेट करना) अप्रभावी हो गया।
- वर्तमान उपयोग: स्पॉन्सर्ड लिंक्स, यूजर-जनरेटेड कंटेंट और क्रॉल बजट प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण।
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