आज हम बात करने वाले हैं इंटरनेट के इतिहास के एक मील के पत्थर (milestone) के बारे में—Yahoo! Directory। सोचिए, 1990s की बात है। आपके पास कोई गूगल नहीं है। आपको किसी वेबसाइट को ढूँढना है। कैसे करेंगे? यहाँ से हमारी कहानी शुरू होती है।
वेब डायरेक्टरी क्या होती है? और Yahoo! Directory का जन्म कैसे हुआ?
1994 में, दो स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र—जेरी यांग और डेविड फिलो—ने एक साधारण सी लिस्ट बनाई, जिसमें उन्होंने अपनी पसंदीदा वेबसाइटों के लिंक जमा किए। यही थी Yahoo! Directory की नींव। कल्पना कीजिए: एक डिजिटल सूची (digital list) जो इंटरनेट को श्रेणियों (categories) में बाँटती थी—जैसे “खेल”, “शिक्षा”, या “मनोरंजन”। यह कोई ऑटोमेटेड सिस्टम नहीं था। हर वेबसाइट को मैन्युअल रूप से (manually) जमा करना पड़ता था और फिर Yahoo! के एडिटर्स (editors) उसे रिव्यू (review) करते थे। भारत के संदर्भ में समझें तो—यह किसी सरकारी दफ्तर में फाइल दाखिल करने जैसा था, जहाँ बाबू साहब हर डॉक्यूमेंट को चेक करके ही आगे बढ़ाते थे!
Yahoo! Directory में वेबसाइट जमा करने की प्रक्रिया क्या थी?
किसी भी वेबसाइट को इस डायरेक्टरी में शामिल होने के लिए मानवीय जाँच (human curation) से गुजरना पड़ता था। सबमिशन प्रक्रिया थी:
- फॉर्म भरना (Form Submission): वेबसाइट मालिक को Yahoo! की साइट पर जाकर एक डिटेल्ड फॉर्म भरना होता था—जैसे साइट का नाम, URL, डिस्क्रिप्शन, और कैटेगरी।
- रिव्यू का इंतजार (Review Queue): सबमिट करने के बाद, Yahoo! के एडिटर्स टीम उसे चेक करती थी। यह प्रक्रिया हफ्तों या महीनों भी ले सकती थी!
- गुणवत्ता मानदंड (Quality Benchmark): एडिटर्स कंटेंट की गुणवत्ता (content relevance), यूजर एक्सपीरियंस (user experience) और कैटेगरी फिट को चेक करते थे। अगर आपकी साइट में स्पैम (spam) या ब्रेकन लिंक (broken links) होते, तो रिजेक्शन पक्का था!
रियल-लाइफ उदाहरण: सोचिए, 2005 में कोई भारतीय स्टार्टअप—जैसे “मकईसॅकडॉटकॉम” (मकई की खेती की जानकारी देने वाली साइट)—Yahoo! Directory में जमा होना चाहता था। तो उसे “कृषि > भारत” कैटेगरी में अप्लाई करना होता। एडिटर्स चेक करते कि साइट में विश्वसनीय जानकारी है या नहीं। अगर वेबसाइट कचरा (junk) होती, तो वह रद्दी की टोकरी (reject bin) में चली जाती!
क्यों था Yahoo! Directory इतना महत्वपूर्ण?
इसकी मान्यता (credibility) ही इसकी ताकत थी। क्योंकि हर साइट को मैन्युअल चेक से गुजरना पड़ता था, यूजर्स को भरोसा था कि डायरेक्टरी में स्पैम फ्री (spam-free) और रिलेवंट (relevant) रिजल्ट्स मिलेंगे। यह SEO (सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन) के लिए भी जरूरी था—जिस साइट का लिंक Yahoo! Directory में होता, उसकी गूगल रैंकिंग भी बढ़ जाती थी! ट्रैफिक जनरेशन (traffic generation) का सोना था ये। 2000s में, भारत में रेडिफ, सिफी या बॉलीवुड हंगामा जैसी साइट्स इसी डायरेक्टरी से विजिटर्स पकड़ती थीं।
फिर 2014 में बंद क्यों हुआ Yahoo! Directory?
इसके पीछे तीन बड़े कारण थे:
- सर्च इंजनों का उदय (Rise of Search Engines): गूगल जैसे सर्च इंजन्स ने एल्गोरिदम (algorithm) से काम लेना शुरू किया, जो सेकंडों में रिजल्ट दे देते थे। मैन्युअल डायरेक्टरीज़ धीमी (slow) और अपडेट से वंचित (outdated) हो गईं।
- वेब का विस्फोट (Web Explosion): 2010 तक इंटरनेट पर करोड़ों वेबसाइट्स (millions of websites) आ चुकी थीं। हर साइट को मैन्युअल रिव्यू करना असंभव (impossible) था—यह ऐसा ही था जैसे मुंबई लोकल ट्रेन में हर यात्री का टिकट चेक करना!
- आर्थिक अक्षमता (Economic Unviability): Yahoo! को इसके लिए बड़ी एडिटर टीम रखनी पड़ती थी, जबकि मुद्रीकरण (monetization) के रास्ते सीमित थे।
Yahoo! Directory की विरासत क्या है?
इसने डिजिटल क्यूरेशन (digital curation) की नींव रखी। आज के डिरेक्टरी-आधारित प्लेटफॉर्म (directory-based platforms)—जैसे जस्टडायल या येल्प—इसी सिद्धांत पर काम करते हैं। भारत में भारतकोश (Bharatkosh) या इंडिया मार्ट जैसी डायरेक्टरीज़ इसकी आध्यात्मिक संतानें हैं! पर सबसे बड़ा सबक यह था: मानवीय निगरानी (human oversight) अच्छी है, पर स्केलेबिलिटी (scalability) के बिना टिक पाना असंभव है।
क्लास एक्टिविटी: कल्पना करें आप 2001 में हैं। अपनी कॉलेज वेबसाइट को Yahoo! Directory में जमा करने के लिए कवर लेटर लिखिए! कौन सी कैटेगरी चुनेंगे? कैटेगरी का नाम: “शिक्षा > विश्वविद्यालय > भारत”
अंतिम विचार:
Yahoo! Directory इंटरनेट की दादी (grandma of internet) थी—प्यारी और ज्ञानवान, पर समय के साथ बदलाव को न झेल पाई। इसने हमें सिखाया कि टेक्नोलॉजी में अनुकूलन (adaptation) ही जीवन है। आज के युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यही काम सेकंडों में कर देता है, पर उस मानवीय छुअन (human touch) की याद हमेशा रहेगी!
शब्दों के मतलब:
- क्यूरेशन (Curation): चयन और संगठन
- स्केलेबिलिटी (Scalability): बढ़ती मांग के अनुकूल ढलने की क्षमता
- मुद्रीकरण (Monetization): कमाई के स्रोत बनाना
- एल्गोरिदम (Algorithm): स्वचालित निर्णय प्रणाली
संक्षिप्त सारांश:
- Yahoo! Directory 1994 में जेरी यांग और डेविड फिलो द्वारा बनाई गई एक मैन्युअली करेटेड वेबसाइटों की सूची थी!
- यह वेबसाइटों को श्रेणियों (जैसे शिक्षा, मनोरंजन) में व्यवस्थित करती थी!
- वेबसाइट्स को शामिल करने के लिए मानव संपादकों द्वारा सख्त समीक्षा की जाती थी!
- 2000 के दशक में यह इंटरनेट उपयोगकर्ताओं और वेबमास्टर्स दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था!
- 2014 में गूगल जैसे सर्च इंजनों के उदय के बाद इसे बंद कर दिया गया!
लोग यह भी पूछते हैं:
Yahoo! Directory और आधुनिक सर्च इंजन में क्या अंतर था?
मुख्य अंतर यह था कि Yahoo! Directory मैन्युअल करेशन पर आधारित था जबकि आधुनिक सर्च इंजन (जैसे गूगल) स्वचालित एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं। Directory में वेबसाइट्स को श्रेणियों में व्यवस्थित किया जाता था और उन्हें शामिल करने के लिए मानव संपादकों की स्वीकृति आवश्यक थी।
क्या Yahoo! Directory का SEO पर कोई प्रभाव पड़ता था?
हाँ, Yahoo! Directory में शामिल होना SEO के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उस समय, Yahoo! Directory से लिंक को गूगल द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले बैकलिंक के रूप में माना जाता था, जिससे वेबसाइट की रैंकिंग में सुधार होता था।
क्या Yahoo! Directory का कोई आधुनिक समकक्ष है?
आज पूरी तरह से समान तो नहीं, लेकिन DMOZ (Open Directory Project) जैसी परियोजनाएँ इसी अवधारणा पर काम करती थीं। वर्तमान में, Yelp (स्थानीय व्यवसायों के लिए) या Justdial (भारत में) जैसी डायरेक्टरी सेवाएँ कुछ हद तक इसी मॉडल का अनुसरण करती हैं।
Yahoo! Directory बनाम आधुनिक सर्च इंजन
पहलू | Yahoo! Directory | आधुनिक सर्च इंजन |
---|---|---|
संगठन प्रणाली | मैन्युअल श्रेणीकरण | स्वचालित इंडेक्सिंग |
समीक्षा प्रक्रिया | मानव संपादकों द्वारा | एल्गोरिदम द्वारा |
अपडेट फ्रीक्वेंसी | धीमी (हफ्तों/महीनों में) | तत्काल (सेकंडों में) |
स्केलेबिलिटी | सीमित (हजारों वेबसाइट्स) | असीमित (अरबों पेज) |
महत्वपूर्णता | 1990s-2000s | 2000s-वर्तमान |
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