पेजरैंक क्या है और यह इन्क्टोमी (Inktomi) से कैसे अलग था? समझिए बेसिक्स से!
आज हम बात करेंगे सर्च इंजन्स के इतिहास की एक दिलचस्प कहानी—जब गूगल ने पेजरैंक (PageRank) अल्गोरिदम (algorithm) लॉन्च किया, तो सबको लगा कि अब सर्च रिजल्ट्स को मनचाहे तरीके से मैनिपुलेट (manipulate) करना नामुमकिन हो जाएगा। लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ? जी नहीं! वेबमास्टर्स (webmasters) ने पहले से इन्क्टोमी सर्च इंजन को गेम करने के लिए जो टूल्स और स्कीम्स (schemes) बनाए थे, वे ही पेजरैंक पर भी काम करने लगे।
पेजरैंक की खासियत
यह अल्गोरिदम वेबपेजेस को उनके बैकलिंक्स (backlinks) की गुणवत्ता और संख्या के आधार पर रैंक करता था। समझिए इसे एक वोटिंग सिस्टम (voting system) की तरह—जितने ज़्यादा अथॉरिटेटिव (authoritative) वेबसाइट्स आपको लिंक करें, उतना ही आपका पेज “महत्वपूर्ण” माना जाता। इन्क्टोमी, जो 90s का प्रसिद्ध सर्च इंजन था, वह केवल कीवर्ड्स और मेटा टैग्स (meta tags) पर निर्भर था। यहाँ तक कि इन्क्टोमी को गेम करना आसान था—बस कीवर्ड स्टफिंग (keyword stuffing) करो या फर्जी लिंक्स बनाओ, और आपकी साइट टॉप पर!
वेबमास्टर्स ने पेजरैंक को प्रभावित करने के लिए कौन-सी तरकीबें अपनाईं?
सोचिए, अगर एक टीचर स्टूडेंट्स को उनके दोस्तों की संख्या से मार्क्स देने लगे, तो क्या होगा? हर कोई फेक फ्रेंड्स बनाने लगेगा! ठीक यही हुआ पेजरैंक के साथ। वेबमास्टर्स ने “लिंक बिल्डिंग” के नाम पर ऐसी स्कीम्स चलाईं, जिनसे गूगल का अल्गोरिदम भी धोखा खा गया।
- लिंक फार्म्स (Link Farms): कल्पना कीजिए एक ऐसा नेटवर्क, जहाँ सैकड़ों वेबसाइट्स सिर्फ एक-दूसरे को लिंक करने के लिए बनाई गई हों। इनमें से 90% साइट्स का कंटेंट बेमतलब होता, लेकिन उनके लिंक्स पेजरैंक को बढ़ाने में मदद करते। यह तरीका इन्क्टोमी के समय में भी चलन में था, जहाँ कीवर्ड्स के साथ लिंक्स की संख्या ही मायने रखती थी।
- ब्लॉग कमेंट स्पैम (Spam): क्या आपने कभी ब्लॉग्स पर “महान पोस्ट! मेरी साइट भी देखें: [लिंक]” जैसे कमेंट्स देखे हैं? यह प्रैक्टिस 2000s में बहुत आम थी। वेबमास्टर्स अनगिनत ब्लॉग्स और फोरम्स पर ऐसे कमेंट्स पोस्ट करते, ताकि उनकी साइट को फ्री बैकलिंक्स मिलें।
- गेस्टबुक स्क्रिप्ट्स (Guestbook Scripts): पुराने ज़माने की वेबसाइट्स पर “गेस्टबुक” पेज होता था, जहाँ विज़िटर्स कमेंट छोड़ सकते थे। हैकर्स ऐसी स्क्रिप्ट्स बनाते, जो ऑटोमेटिकली (automatically) गेस्टबुक्स में स्पैम लिंक्स पोस्ट कर देतीं। इन्क्टोमी के समय में यह तरीका सर्च रैंकिंग बढ़ाने के लिए कारगर था, और पेजरैंक के साथ भी यह चलन जारी रहा।
क्या पेजरैंक वाकई इन्क्टोमी से ज़्यादा सुरक्षित था? एक टेक्निकल विश्लेषण
गूगल ने पेजरैंक को लॉन्च करते समय दावा किया था कि यह अल्गोरिदम “लिंक्स की क्वालिटी” को प्राथमिकता देगा। लेकिन वेबमास्टर्स ने पाया कि “क्वालिटी” को मापने का फॉर्मूला (formula) भीमरूतियों (loopholes) से भरा हुआ है।
ऑथॉरिटी स्कोर (Authority Score) का गणित
पेजरैंक फ़ॉर्मूला था:
PR(A) = (1-d) + d (PR(T1)/C(T1) + … + PR(Tn)/C(Tn))
यहाँ, d
एक डैम्पनिंग फैक्टर (damping factor) था, और C(Tn)
टी-वेबपेज के आउटगोइंग लिंक्स की संख्या।
पर इस फ़ॉर्मूले में कमजोरी थी—अगर कोई वेबमास्टर हजारों लो-क्वालिटी साइट्स से लिंक बना ले, तो PR(A)
बढ़ जाता, भले ही वे लिंक्स स्पैम हों।
सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) का रोल
इन्क्टोमी और पेजरैंक दोनों ह्यूमन बिहेवियर (human behavior) पर निर्भर थे। जैसे, अगर लोगों को लगेगा कि “लिंक्स बनाने से रैंक बढ़ती है”, तो वे उसी पर फोकस करेंगे। यही कारण था कि पुराने टूल्स नए सिस्टम में भी काम करते रहे।
पेजरैंक के खिलाफ़ ये स्कीम्स क्यों काम कर गईं? रियल-लाइफ एनालॉजी (Analogy)
सोचिए, आप एक टीचर हैं जो स्टूडेंट्स को उनके रेफरेंस (references) के आधार पर मार्क्स देते हैं। अब अगर कोई स्टूडेंट 100 फेक रेफरेंस लेटर्स बना ले, तो आप उसे टॉपर समझेंगे! यही हुआ पेजरैंक के साथ। गूगल का अल्गोरिदम “ट्रस्ट” को मापने के लिए लिंक्स को एक सिग्नल (signal) मानता था, लेकिन वेबमास्टर्स ने इस सिग्नल को नकली तरीके से जेनरेट (generate) कर दिया।
उदाहरण:
2004 में एक फेमस केस सामने आया, जहाँ एक गैंबलिंग (gambling) वेबसाइट ने हज़ारों ब्लॉग्स और फोरम्स पर स्पैम लिंक्स पोस्ट करके अपना पेजरैंक 7/10 तक पहुँचा दिया। नतीजा? वह साइट “ऑनलाइन कैसीनो” कीवर्ड पर टॉप पर आ गई, भले ही उसका कंटेंट घटिया था!
गूगल ने इन स्कीम्स का कैसे जवाब दिया? एडवांस्ड सोल्यूशन्स
- पेंगुइन अल्गोरिदम (2012): यह अपडेट स्पैमी लिंक्स को पहचानकर उन्हें इग्नोर (ignore) करने लगा। अब सिर्फ लिंक्स की संख्या नहीं, बल्कि उनका रिलेवेंस (relevance) और सोर्स की क्रेडिबिलिटी (credibility) मायने रखती थी।
- नोफ़ोलो (Nofollow) टैग: गूगल ने वेबमास्टर्स को सलाह दी कि अनट्रस्टेड (untrusted) लिंक्स में
rel="nofollow"
एट्रिब्यूट (attribute) जोड़ें, ताकि पेजरैंक उन्हें काउंट न करे। - मशीन लर्निंग (Machine Learning): आज के अल्गोरिदम्स (जैसे RankBrain) ऑटोमेटिकली स्पैम पैटर्न्स को पकड़ लेते हैं। अगर कोई साइट अचानक हज़ारों लिंक्स जेनरेट करे, तो सिस्टम उसे रेड फ्लैग (red flag) मार्क कर देता है।
क्या आज भी पेजरैंक को गेम करना संभव है? एक्सपर्ट की राय
सीधा जवाब: हाँ, लेकिन बहुत मुश्किल! आज के सर्च इंजन्स 200+ सिग्नल्स (signals) का उपयोग करते हैं—कंटेंट क्वालिटी, यूजर एक्सपीरियंस (user experience), मोबाइल फ्रेंड्लीनेस (mobile-friendliness), और भी बहुत कुछ। सिर्फ लिंक बिल्डिंग पर फोकस करने वाली साइट्स को गूगल “पागलखाने का रास्ता” दिखा देता है!
सबक (Lesson):
सर्च इंजन ऑप्टिमाइज़ेशन (SEO) एक लंबी रेस है, जहाँ शॉर्टकट्स (shortcuts) काम नहीं आते। जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी एडवांस (advance) होगी, वेबमास्टर्स को भी एथिकल (ethical) और सस्टेनेबल (sustainable) तरीके अपनाने होंगे।
निष्कर्ष:
पेजरैंक और इन्क्टोमी का यह सफर हमें सिखाता है कि टेक्नोलॉजी चाहे कितनी भी एडवांस्ड (advanced) क्यों न हो, इंसानी चालाकी उसे चुनौती देने से कभी पीछे नहीं हटती। लेकिन अंत में, क्वालिटी और यूजर की खुशी ही असली विजेता होती है। तो क्यों न हम सब सीखें—”क्विक विंस (quick wins)” के बजाय “लॉन्ग-टर्म सक्सेस (long-term success)” पर फोकस करें?
कठिन शब्दों के अर्थ:
- मैनिपुलेट (Manipulate): गलत तरीके से प्रभावित करना
- अथॉरिटेटिव (Authoritative): प्रामाणिक
- स्कीम्स (Schemes): योजनाएँ/धोखाधड़ी
- अल्गोरिदम (Algorithm): गणितीय नियमों का समूह
- स्पैम (Spam): अवांछित/फर्जी कंटेंट
- लूपहोल्स (Loopholes): कानूनी छेद
- क्रेडिबिलिटी (Credibility): विश्वसनीयता
- सस्टेनेबल (Sustainable): टिकाऊ
📌 Quick Summary
- पेजरैंक गूगल का एक अल्गोरिदम था जो वेबपेजेस को बैकलिंक्स की गुणवत्ता के आधार पर रैंक करता था।
- वेबमास्टर्स ने पेजरैंक को गेम करने के लिए लिंक फार्म्स, ब्लॉग कमेंट स्पैम जैसी तरकीबें अपनाईं।
- गूगल ने पेंगुइन अल्गोरिदम, नोफ़ोलो टैग और मशीन लर्निंग से इन स्कीम्स का जवाब दिया।
- आज के सर्च इंजन 200+ सिग्नल्स का उपयोग करते हैं, जिससे सिस्टम को गेम करना मुश्किल हो गया है।
- लॉन्ग-टर्म सक्सेस के लिए एथिकल एसईओ प्रैक्टिसेस ही सबसे अच्छा तरीका है।
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1. पेजरैंक और इन्क्टोमी में क्या अंतर था?
पेजरैंक वेबपेजेस को उनके बैकलिंक्स की गुणवत्ता और संख्या के आधार पर रैंक करता था, जबकि इन्क्टोमी केवल कीवर्ड्स और मेटा टैग्स पर निर्भर था। पेजरैंक एक वोटिंग सिस्टम की तरह काम करता था जहाँ अथॉरिटेटिव साइट्स से लिंक मिलने पर पेज को अधिक महत्व मिलता था।
2. लिंक फार्म्स क्या होते हैं?
लिंक फार्म्स वेबसाइट्स के ऐसे नेटवर्क होते हैं जो सिर्फ एक-दूसरे को लिंक करने के लिए बनाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश साइट्स का कंटेंट बेमतलब होता है, लेकिन ये पेजरैंक को बढ़ाने में मदद करते थे। यह तरीका इन्क्टोमी और पेजरैंक दोनों में ही प्रचलित था।
3. गूगल ने पेजरैंक को गेम करने वालों के खिलाफ क्या कदम उठाए?
गूगल ने पेंगुइन अल्गोरिदम (2012) लॉन्च किया जो स्पैमी लिंक्स को पहचानकर इग्नोर करता है, नोफ़ोलो टैग की शुरुआत की जिससे अनट्रस्टेड लिंक्स को काउंट नहीं किया जाता, और मशीन लर्निंग तकनीकों (जैसे RankBrain) का उपयोग किया जो स्पैम पैटर्न्स को ऑटोमेटिकली पकड़ लेते हैं।
4. क्या आज भी पेजरैंक महत्वपूर्ण है?
पेजरैंक अब आधिकारिक तौर पर गूगल द्वारा उपयोग नहीं किया जाता, लेकिन लिंक्स की गुणवत्ता आज भी एसईओ का एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। हालांकि, आधुनिक अल्गोरिदम्स 200+ अन्य सिग्नल्स का भी उपयोग करते हैं, जिससे सिर्फ लिंक बिल्डिंग पर फोकस करना अप्रभावी हो गया है।
📊 पेजरैंक बनाम इन्क्टोमी: तुलना तालिका
फीचर | पेजरैंक | इन्क्टोमी |
---|---|---|
रैंकिंग फैक्टर | बैकलिंक्स की गुणवत्ता और संख्या | कीवर्ड्स और मेटा टैग्स |
गेम करने के तरीके | लिंक फार्म्स, गेस्टबुक स्पैम | कीवर्ड स्टफिंग, फर्जी लिंक्स |
सिस्टम की सुरक्षा | अधिक जटिल लेकिन फिर भी हेरफेर योग्य | आसानी से हेरफेर योग्य |
समय अवधि | 1998 के बाद | 1990s में प्रमुख |
वर्तमान स्थिति | आधिकारिक तौर पर बंद (2016) | 2000s में बंद हो गया |
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