अवशोषण हानि (Absorption Loss) की सरल परिभाषा:
अवशोषण हानि (Absorption Loss) ऑप्टिकल फाइबर में होने वाली वह ऊर्जा क्षति है जब फाइबर की सामग्री (जैसे सिलिका ग्लास) प्रकाश (लाइट सिग्नल) को सोख लेती है और उसे ऊष्मा (Heat) में बदल देती है। इससे सिग्नल कमजोर हो जाता है। यह फाइबर में मौजूद अशुद्धियों (जैसे पानी के अणु) या सामग्री के गुणों के कारण होता है।
उदाहरण: जैसे काला कपड़ा सूरज की रोशनी को गर्मी में बदलकर सोख लेता है, वैसे ही फाइबर भी प्रकाश को अवशोषित करके सिग्नल को कमज़ोर कर देता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह तरंगदैर्ध्य (Wavelength) पर निर्भर करता है (जैसे 1550nm पर हानि कम, 1383nm पर ज़्यादा)।
- शुद्ध फाइबर (Pure Fiber) में यह हानि कम होती है।
- लंबी दूरी के संचार (Long-Distance Communication) में यह एक बड़ी चुनौती है।
नमस्ते विद्यार्थियों! आज हम कंप्यूटर नेटवर्किंग और उच्च-गति डाटा संचार (High-Speed Data Communication) की रीढ़ की हड्डी, ऑप्टिकल फाइबर (Optical Fiber) के एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा करने जा रहे हैं – “अवशोषण हानि” या “Absorption Loss”। कल्पना कीजिए, आप एक अंधेरे कमरे में टॉर्च जलाकर दूसरे छोर पर बैठे साथी को संदेश भेजना चाहते हैं। अगर कमरे में धुआं भरा हो, तो क्या होगा? टॉर्च की रोशनी धुएं के कणों द्वारा सोख ली जाएगी (Absorbed), और रोशनी का कुछ हिस्सा आपके साथी तक पहुंचने से पहले ही कम हो जाएगा या गायब हो जाएगा। ठीक यही घटना ऑप्टिकल फाइबर के अंदर भी घटित होती है, जब प्रकाश की किरणें (Light Rays) या फोटॉन (Photons) फाइबर के पदार्थ (Material) द्वारा सोख लिए जाते हैं। यह सिग्नल क्षय (Signal Attenuation) का एक प्रमुख कारण है और लंबी दूरी के संचार में एक बड़ी चुनौती बनकर उभरता है। तो आइए, इस “सिग्नल के गायब होने” के रहस्य को गहराई से समझते हैं।
1. अवशोषण हानि आखिर है क्या? (What Exactly is Absorption Loss?)
सरल शब्दों में कहें तो, अवशोषण हानि वह ऊर्जा की कमी (Energy Loss) है जो तब होती है जब ऑप्टिकल फाइबर के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ (सिलिका ग्लास या प्लास्टिक) प्रकाश ऊर्जा (Light Energy) को अवशोषित (Absorb) कर लेता है और उसे ऊष्मा (Heat) में परिवर्तित कर देता है। यह प्रक्रिया फाइबर के भीतर यात्रा कर रहे प्रकाश सिग्नल की तीव्रता (Intensity) को कम कर देती है। याद रखिए, ऑप्टिकल फाइबर संचार पूरी तरह प्रकाश के सिद्धांतों पर आधारित है। हम जानकारी (डाटा) को प्रकाश की चमकती-बुझती (On-Off) किरणों के रूप में, यानि बाइनरी 0 और 1 (Binary 0 and 1) में परिवर्तित करके भेजते हैं। अगर प्रकाश की तीव्रता ही कम हो जाएगी, तो रिसीवर (Receiver) के लिए यह पहचानना मुश्किल हो जाएगा कि आया सिग्नल “1” था या “0”? यही कारण है कि अवशोषण हानि को समझना और कम करना इतना महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ “थोड़ा सा कमजोर सिग्नल” नहीं है; लंबी दूरी (जैसे समुद्र के नीचे से गुजरने वाला केबल) पर यह ना केवल सिग्नल को कमजोर करता है बल्कि संचार की गुणवत्ता (Quality of Service – QoS) और डाटा दर (Data Rate) पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि एक हीरा (Diamond) इतना चमकदार क्यों दिखता है, जबकि कोयला (Coal) नहीं? इसका मुख्य कारण अवशोषण ही है! हीरा प्रकाश को बहुत कम अवशोषित करता है और उसे अधिकतम परावर्तित (Reflect) या पारगमित (Transmit) करता है, जबकि कोयला प्रकाश की अधिकांश ऊर्जा को सोख लेता है, इसीलिए वह काला दिखता है। ऑप्टिकल फाइबर के लिए हमारा लक्ष्य भी एक ऐसी सामग्री बनाना होता है जो हीरे की तरह प्रकाश को कम से कम सोखे!
2. अवशोषण हानि क्यों होती है? मूलभूत कारण क्या हैं? (Why Does Absorption Loss Occur? The Fundamental Causes)
अवशोषण हानि के पीछे मुख्य रूप से दो प्रमुख भौतिक प्रक्रियाएं काम करती हैं:
- अशुद्धि-प्रेरित अवशोषण (Impurity-Induced Absorption): यह अवशोषण हानि का सबसे बड़ा स्रोत है, खासकर शुद्ध सिलिका (Pure Silica – SiO₂) से बने फाइबर में। कोई भी सामग्री पूर्णतः शुद्ध (100% Pure) नहीं होती। निर्माण प्रक्रिया में, या फाइबर में जान-बूझकर मिलाई गई अन्य सामग्रियों (Dopants) के कारण, अशुद्धियाँ (Impurities) मौजूद रहती हैं। इन अशुद्धियों में सबसे कुख्यात हैं हाइड्रॉक्सिल आयन (OH⁻ Ions), जो पानी (H₂O) के अणुओं से आते हैं। ये OH⁻ आयन प्रकाश के कुछ विशिष्ट तरंगदैर्ध्यों (Wavelengths), विशेष रूप से 1383 नैनोमीटर (nm) के आसपास, को बहुत ही प्रबलता से अवशोषित कर लेते हैं। यह तरंगदैर्ध्य अक्सर संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले विंडोज़ (Windows) जैसे 1310nm और 1550nm के बीच पड़ता है, जिससे यह एक बड़ी समस्या बन जाता है। कल्पना कीजिए जैसे हमारे फाइबर हाईवे पर एक चौराहा (OH⁻ आयन) है जहां विशेष नंबर की गाड़ियाँ (1383nm प्रकाश) को रोककर उनका ईंधन (ऊर्जा) छीन लिया जाता है! इसके अलावा, अन्य धातु आयन जैसे आयरन (Fe), कॉपर (Cu), क्रोमियम (Cr), वैनेडियम (V) भी, भले ही अल्प मात्रा (Parts per Billion – PPB) में हों, विभिन्न तरंगदैर्ध्यों पर प्रकाश को अवशोषित कर सकते हैं और हानि बढ़ा सकते हैं।
- आंतरिक अवशोषण (Intrinsic Absorption): यह फाइबर की मूल सामग्री (शुद्ध सिलिका या कोर/क्लैडिंग डोपेंट्स) के परमाणुओं (Atoms) और इलेक्ट्रॉनों (Electrons) के साथ प्रकाश की अनिवार्य अंतःक्रिया (Inevitable Interaction) के कारण होता है। यह दो प्रकार का होता है:
- पराबैंगनी अवशोषण (Ultraviolet Absorption – UV Absorption): जब प्रकाश का फोटॉन पर्याप्त ऊर्जा (UV रेंज में) वाला होता है, तो वह सिलिका के परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित (Excite) कर सकता है, उन्हें उच्च ऊर्जा स्तर (Higher Energy Level) पर कूदने के लिए मजबूर कर सकता है। इस उत्तेजना (Excitation) में लगी ऊर्जा फोटॉन से ली जाती है, जिसका अर्थ है अवशोषण और हानि। यह हानि छोटी तरंगदैर्ध्यों (जैसे 800nm से कम) पर अधिक प्रभावी होती है। इसे ऐसे समझें: जैसे एक बहुत उछल-कूद वाला बच्चा (उच्च ऊर्जा UV फोटॉन) कमरे में घुसते ही सोफे पर चढ़ जाता है (परमाणु के इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करता है) और उसकी ऊर्जा खर्च हो जाती है।
- अवरक्त अवशोषण (Infrared Absorption – IR Absorption): लंबी तरंगदैर्ध्यों (IR रेंज में, जैसे 1600nm से अधिक) पर, प्रकाश का फोटॉन सिलिका जालक (Silica Lattice) के कंपन (Vibrations) के साथ अनुनाद (Resonate) कर सकता है। ये कंपन सिलिका परमाणुओं के बीच के बंधों (Bonds) की खिंचाव और संकुचन के कारण होते हैं। जब फोटॉन की ऊर्जा इन कंपन ऊर्जा स्तरों से मेल खाती है, तो फोटॉन की ऊर्जा जालक कंपनों में स्थानांतरित हो जाती है, जिसे फोनॉन (Phonon) कहते हैं। यह ऊर्जा फिर से ऊष्मा के रूप में व्यय होती है। इसे ऐसे समझें: जैसे एक विशेष सुर (IR फोटॉन) गाना गाने पर ग्लास का प्याला (सिलिका जालक) कंपन करने लगता है (फोनॉन उत्पन्न होते हैं), गाने की ऊर्जा कंपन में बदल जाती है।
3. विभिन्न तरंगदैर्ध्यों पर अवशोषण हानि का प्रभाव कैसे बदलता है? (How Does Absorption Loss Vary with Different Wavelengths?)
यह बिंदु अवशोषण हानि को समझने में बेहद महत्वपूर्ण है! अवशोषण हानि तरंगदैर्ध्य-निर्भर (Wavelength-Dependent) होती है। यानी, अलग-अलग रंग (तरंगदैर्ध्य) के प्रकाश को फाइबर सामग्री अलग-अलग मात्रा में सोखती है।
- पराबैंगनी (UV) क्षेत्र (< ~800 nm): यहाँ आंतरिक UV अवशोषण प्रमुख होता है। तरंगदैर्ध्य घटने (ऊर्जा बढ़ने) के साथ हानि तेजी से बढ़ती है। यही कारण है कि पहले के छोटी दूरी के फाइबर सिस्टम जो 850nm पर काम करते थे, उनमें हानि अपेक्षाकृत अधिक होती थी।
- पहली खिड़की (First Window) ~850 nm: यहाँ UV अवशोषण कम हो गया है, लेकिन अभी भी महत्वपूर्ण है। अशुद्धियों का भी योगदान होता है। यह मल्टीमोड फाइबर (Multi-Mode Fiber – MMF) के लिए पारंपरिक तरंगदैर्ध्य था।
- दूसरी खिड़की (Second Window) ~1310 nm: यह सिलिका फाइबर के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है जहां फैलाव हानि (Dispersion Loss) शून्य (या न्यूनतम) हो जाता है। हालांकि, अवशोषण हानि, विशेष रूप से OH⁻ आयनों का 1383nm पर पीक (Peak), इस क्षेत्र के पास होता है। यदि फाइबर में OH⁻ अशुद्धि अधिक है, तो 1310nm पर भी हानि बढ़ जाती है। आधुनिक “शुष्क” फाइबर (Dry Fibers) में OH⁻ अशुद्धि बहुत कम की जाती है, जिससे 1310nm एक व्यवहार्य विंडो बनी हुई है, खासकर सिंगल-मोड फाइबर (Single-Mode Fiber – SMF) में लघु से मध्यम दूरी के लिए।
- 1383 nm (“जल पीक” – Water Peak): यह OH⁻ आयनों का सबसे मजबूत अवशोषण बैंड है। पुराने फाइबर में यहाँ हानि बहुत अधिक (कई dB/km) हो सकती है, जिससे यह तरंगदैर्ध्य प्रयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता था। क्या आप जानते हैं कि भारत में BSNL, रिलायंस जिओ जैसी कंपनियों के पुराने नेटवर्क में इस पीक के कारण 1310nm और 1550nm के बीच स्पेक्ट्रम का एक बड़ा हिस्सा बेकार हो जाता था?
- तीसरी खिड़की (Third Window) ~1550 nm: यह सिलिका फाइबर के लिए सबसे कम अवशोषण हानि का क्षेत्र है! यहाँ आंतरिक UV और IR अवशोषण दोनों ही अपने न्यूनतम स्तर पर होते हैं। अगर फाइबर में OH⁻ अशुद्धि कम है (जैसा कि आधुनिक जीरो-वॉटर-पीक – ZWP – फाइबर में होता है), तो 1550nm पर अवशोषण हानि बेहद कम (लगभग 0.2 dB/km या उससे भी कम) होती है। साथ ही, यहाँ ऑप्टिकल एम्पलीफायर (Optical Amplifiers – EDFA) भी बहुत कारगर होते हैं। यही कारण है कि लंबी दूरी और उच्च क्षमता वाले सिस्टम (जैसे भारत के प्रमुख शहरों को जोड़ने वाले नेशनल लॉन्ग डिस्टेंस – NLD – नेटवर्क या सबमरीन केबल्स) मुख्य रूप से 1550nm (और इसके आसपास के सी-बैंड और एल-बैंड) का उपयोग करते हैं।
- अवरक्त (IR) क्षेत्र (> ~1600 nm): जैसे-जैसे तरंगदैर्ध्य बढ़ता है (जैसे 1625nm, 1650nm – एल-बैंड), आंतरिक IR अवशोषण बढ़ना शुरू हो जाता है। यह हानि फिर से बढ़ जाती है, जिससे इन तरंगदैर्ध्यों का उपयोग सीमित हो जाता है, भले ही फैलाव यहाँ कम हो। आजकल, बैंडविड्थ की भूख मिटाने के लिए एल-बैंड का भी उपयोग किया जा रहा है, लेकिन अवशोषण हानि एक सीमा निर्धारित करती है।
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- तरंगदैर्ध्य (Wavelength): प्रकाश तरंग की एक चक्र (Cycle) की लंबाई, नैनोमीटर (nm) में मापी जाती है। यह प्रकाश का “रंग” निर्धारित करती है (दृश्य प्रकाश के लिए)।
- विंडो (Window): वह तरंगदैर्ध्य रेंज जहां फाइबर में कुल हानि (अवशोषण + अन्य हानियाँ) अपेक्षाकृत न्यूनतम होती है।
- डेसिबल प्रति किलोमीटर (dB/km): हानि मापने की इकाई। यह बताती है कि 1 किलोमीटर फाइबर से गुजरने पर सिग्नल की शक्ति कितने डेसिबल कम हो जाती है। 3 dB/km हानि का मतलब है सिग्नल शक्ति आधी हो जाना।
- जीरो-वॉटर-पीक फाइबर (Zero-Water-Peak Fiber – ZWP): आधुनिक फाइबर जिसमें OH⁻ अशुद्धियों को अत्यंत निम्न स्तर (जैसे < 0.1 ppb) तक कम कर दिया जाता है, जिससे 1383nm पर अवशोषण पीक लगभग गायब हो जाता है और 1310nm से 1625nm तक का स्पेक्ट्रम लगभग समान रूप से कम हानि वाला उपलब्ध होता है। यह भारत में अब नए लगाए जाने वाले अधिकांश फाइबर नेटवर्क का मानक है।
4. अवशोषण हानि का मापन और प्रभाव: संख्याओं में समझ (Measuring Absorption Loss and its Impact: Understanding the Numbers)
अवशोषण हानि को सीधे तौर पर अलग से मापना मुश्किल है। हम आमतौर पर कुल हानि (Total Attenuation) को मापते हैं, जो अवशोषण हानि (Absorption Loss – αₐ), प्रकीर्णन हानि (Scattering Loss – αₛ), और अन्य छोटी हानियों (जैसे माइक्रोबेंडिंग – Microbending) का योग होता है। कुल हानि α को डेसिबल प्रति किलोमीटर (dB/km) में व्यक्त किया जाता है:
α (dB/km) = αₐ + αₛ + ...
एक आदर्श सिलिका फाइबर के लिए, अवशोषण हानि का सिद्धांतिक न्यूनतम मान (Theoretical Minimum) लगभग 0.15 dB/km पर 1550nm के आसपास होता है। हालांकि, व्यावहारिक फाइबर में अशुद्धियों और अन्य कारकों के कारण यह थोड़ा अधिक होता है। आधुनिक ZWP सिंगल-मोड फाइबर में 1550nm पर कुल हानि 0.18 dB/km से 0.25 dB/km के बीच होना आम बात है, जिसमें अवशोषण हानि एक प्रमुख घटक है।
इस हानि का प्रभाव कितना गंभीर है? आइए एक उदाहरण से समझते हैं:
- मान लीजिए हमारे पास 100 किलोमीटर लंबा फाइबर लिंक है।
- अगर फाइबर की हानि 0.2 dB/km है, तो कुल हानि = 100 km * 0.2 dB/km = 20 dB.
- 20 dB हानि का मतलब है कि सिग्नल की शक्ति मूल शक्ति के 1/100वें हिस्से तक कम हो जाती है! (क्योंकि 10 dB = 10 गुना कमी, 20 dB = 100 गुना कमी)।
- अगर रिसीवर को सिग्नल को सही तरीके से डिकोड (Decode) करने के लिए एक न्यूनतम शक्ति स्तर (Minimum Power Level) की आवश्यकता होती है, तो 100 किमी के बाद हमें सिग्नल को बढ़ाने (Amplify) की आवश्यकता पड़ेगी। अगर हानि अधिक होती, जैसे पुराने फाइबर में 1383nm पर 2 dB/km हो सकती थी, तो उसी 100 किमी पर हानि 200 dB हो जाती (सिग्नल का 10^20वां हिस्सा रह जाता – जो कि पकड़े जाने लायक नहीं होता!), जो असंभव है। इसलिए, अवशोषण हानि को कम करना एम्पलीफायरों के बीच की दूरी (Amplifier Spacing) बढ़ाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे नेटवर्क की लागत और जटिलता कम होती है। यही कारण है कि भारत में 5G बैकहॉल (Backhaul) और फाइबर टू द होम (FTTH) के विस्तार के लिए कम हानि वाले फाइबर का उपयोग अनिवार्य है।
5. अवशोषण हानि को कैसे कम किया जाता है? (How is Absorption Loss Minimized?)
फाइबर निर्माता और नेटवर्क डिजाइनर अवशोषण हानि को न्यूनतम करने के लिए कई उपाय अपनाते हैं:
- अशुद्धियों को कम करना (Reducing Impurities): यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है!
- OH⁻ आयनों का निष्कासन (Removal of OH⁻ Ions): फाइबर निर्माण प्रक्रिया (Modified Chemical Vapor Deposition – MCVD या Outside Vapor Deposition – OVD) को इस तरह अनुकूलित किया जाता है कि पानी के अणु और हाइड्रोजन यौगिकों (Hydrogen Compounds) का प्रवेश न्यूनतम हो। विशेष ड्रायिंग (Drying) प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। इसी के परिणामस्वरूप ZWP फाइबर बनते हैं।
- धात्विक अशुद्धियों का नियंत्रण (Control of Metallic Impurities): कच्चे माल (Raw Materials) को अत्यंत शुद्ध रखा जाता है। प्रक्रिया को ऐसे वातावरण में चलाया जाता है जहां धातु प्रदूषण (Metal Contamination) न्यूनतम हो। सामग्री का सख्त परीक्षण किया जाता है।
- उचित तरंगदैर्ध्य का चयन (Choosing the Right Wavelength): जैसा कि हमने पहले चर्चा की, 1550nm क्षेत्र में अवशोषण हानि न्यूनतम होती है। इसलिए, लंबी दूरी और उच्च क्षमता वाले सिस्टम इसी विंडो (और इसके विस्तारित बैंड – C-band: 1530-1565nm, L-band: 1565-1625nm) में काम करते हैं। 1310nm का उपयोग लघु दूरी के लिए किया जाता है, खासकर जहां फैलाव (Dispersion) महत्वपूर्ण होता है (और जहां ZWP फाइबर का उपयोग होता है)।
- सामग्री का अनुकूलन (Material Optimization): शुद्ध सिलिका कोर के साथ, क्लैडिंग (Cladding) के लिए विभिन्न डोपेंट्स (जैसे फ्लोरीन – Fluorine या जर्मेनियम – Germanium) का उपयोग किया जाता है। इन डोपेंट्स के चयन और सांद्रता (Concentration) को इस तरह से किया जाता है कि कोर और क्लैडिंग के बीच अपवर्तनांक अंतर (Refractive Index Difference) तो बना रहे, लेकिन अवशोषण हानि न्यूनतम हो। कभी-कभी विशेष फाइबर जैसे फ्लोरीन-डोप्ड कोर (Fluorine-Doped Core) या प्योर-सिलिका कोर (Pure-Silica Core) का उपयोग अवशोषण को और कम करने के लिए किया जाता है।
- उन्नत निर्माण तकनीकें (Advanced Fabrication Techniques): MCVD, OVD, VAD (Vapor Axial Deposition) जैसी तकनीकों में लगातार सुधार किए जाते हैं ताकि अधिक समरूप (Homogeneous), घनीय (Dense), और कम दोष वाली (Low Defect) प्रीफॉर्म (Preform – फाइबर का बड़ा प्रारूप) बनाई जा सके, जिससे अवशोषण हानि कम हो।
6. निष्कर्ष: अवशोषण हानि – एक सतत चुनौती (Conclusion: Absorption Loss – An Ongoing Challenge)
विद्यार्थियों, अवशोषण हानि ऑप्टिकल फाइबर संचार में ऊर्जा क्षय का एक मूलभूत भौतिक तंत्र है। यह फाइबर सामग्री की आंतरिक प्रकृति और अपरिहार्य अशुद्धियों के कारण उत्पन्न होता है। जबकि आधुनिक तकनीकों ने, विशेष रूप से OH⁻ अशुद्धियों को कम करके और 1550nm विंडो का उपयोग करके, अवशोषण हानि को अत्यंत निम्न स्तर (0.2 dB/km के आसपास) तक पहुँचा दिया है, यह अभी भी लंबी दूरी के संचार (जैसे ट्रांस-ओशनिक केबल्स) में एक सीमा निर्धारक कारक बना हुआ है। अवशोषण हानि को समझना सिर्फ सिद्धांत नहीं है; यह व्यावहारिक नेटवर्क डिजाइन, सिस्टम बजटिंग (System Budgeting – सिग्नल शक्ति की गणना), और समस्या निवारण (Troubleshooting) के लिए अत्यावश्यक है। जब कोई टेलीकॉम इंजीनियर यह कहता है कि “लिंक में हानि बहुत अधिक है,” तो उसके पीछे अवशोषण और प्रकीर्णन दोनों ही हानियाँ जिम्मेदार हो सकती हैं। नई सामग्रियों (जैसे फ्लोरीन-डोप्ड सिलिका, विशेष ग्लास) पर शोध और अशुद्धि नियंत्रण में सुधार जारी है ताकि भविष्य में और भी कम हानि वाले फाइबर बनाए जा सकें, जो टेराबिट्स (Terabits) में डाटा को हजारों किलोमीटर दूर तक ले जाने में सक्षम होंगे। इसलिए, यह टॉपिक न केवल आपकी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर (Digital Infrastructure) की रीढ़ को समझने के लिए भी आवश्यक है!
Source:
Absorption Loss | ScienceDirect
ABSORPTION LOSSES | ROHINI COLLEGE OF ENGINEERING & TECHNOLOGY | PDF
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